कवितावली
Wednesday, June 9, 2010
आस
लुढक गया मन का पात्र
बह गया आसव सारा प्रेम का.
सुवास, जल, चांदनी
और तुम्हारे होने की आस ने पी लिया
मेरा अंतस.
बूँद की तरह फिर उतरो मन के पात्र में.
1 comment:
विश्व हिन्दी साहित्य
October 6, 2021 at 11:05 PM
सुंदर पंक्तियां
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सुंदर पंक्तियां
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