Saturday, April 19, 2008

किस विध इतने

तुममें कुछ नहीं टूटता क्या
जब तुम तोड़ते हो किसी को
मैं एक पाषण की करूँ वंदना अनंत
मैं एक पाषण से करूँ विनती
किसी पुष्प का खिल जाना अनुभूत होता है कभी तुमको
कही तुम किसी कांटे से बचाकर चलते हो
तुम किस विध इतने विकट
कठोर
असम्भव