असम्भव ही था
किन्तु नम भीगी संध्या में
तपिश असीमित.
तुम्हारी कांपती स्मृति
स्पर्श करती चलती है
मेरा मन.
असंभव ही था इस तरह जीना, जो निरंतर है.
किन्तु नम भीगी संध्या में
तपिश असीमित.
तुम्हारी कांपती स्मृति
स्पर्श करती चलती है
मेरा मन.
असंभव ही था इस तरह जीना, जो निरंतर है.