पिया
उदासी का झरोखा
बनता है
पीर की दग्ध सलाखों से.
दूर से चमकती हैं
रक्ताभ रेखाओं के बीच
दुखों की आवृतियाँ.
इकहरा है सबकुछ
सबकुछ जो है मेरे विपरीत.
मोरपंख
रात्रि में खो देता है आभा
मन नहीं खोता कोई भी रंग.
उदासी का झरोखा
बनता है
पीर की दग्ध सलाखों से.
दूर से चमकती हैं
रक्ताभ रेखाओं के बीच
दुखों की आवृतियाँ.
इकहरा है सबकुछ
सबकुछ जो है मेरे विपरीत.
मोरपंख
रात्रि में खो देता है आभा
मन नहीं खोता कोई भी रंग.