Thursday, July 19, 2007

आवृतियाँ

पिया
उदासी का झरोखा
बनता है
पीर की दग्ध सलाखों से.

दूर से चमकती हैं
रक्ताभ रेखाओं के बीच
दुखों की आवृतियाँ.

इकहरा है सबकुछ
सबकुछ जो है मेरे विपरीत.

मोरपंख
रात्रि में खो देता है आभा
मन नहीं खोता कोई भी रंग.

Wednesday, July 4, 2007

लेख

नहीं हो पाया उजला
उसका लिखा काला लेख.

सलाइयों से उधेड़ रहा है जीवन के
जीवन को बुनने वाला.

अश्रु समझते हैं, प्रत्येक भाषा नुकीली.