Saturday, May 26, 2007
Friday, May 25, 2007
प्रेम की आस का
सुनो कोई स्मृति नहीं सुकोमल
कोई दृश्य नहीं सुशोभित
एक तुम नहीं तो
कुछ नहीं.
हर रात सिकती है कोई सिसकी
गंध तपिश की
पपड़ी के चटकने का स्वर
क्या है था मेरे भाग में
तुम्हारी ठोकरें
तुम्हारा तिरस्कार
और तुम्हारा अबोला
क्या कभी न था
प्यार भी करें और खुश भी रह लें.
एक तुम्हें छू लूं एक तुम्हें ओढ़ लू
एक देखूं जी भरकर तुम्ही को
कोई फरेब भी न बचा कहीं
झूठे प्रेम की आसा का
कोई दृश्य नहीं सुशोभित
एक तुम नहीं तो
कुछ नहीं.
हर रात सिकती है कोई सिसकी
गंध तपिश की
पपड़ी के चटकने का स्वर
क्या है था मेरे भाग में
तुम्हारी ठोकरें
तुम्हारा तिरस्कार
और तुम्हारा अबोला
क्या कभी न था
प्यार भी करें और खुश भी रह लें.
एक तुम्हें छू लूं एक तुम्हें ओढ़ लू
एक देखूं जी भरकर तुम्ही को
कोई फरेब भी न बचा कहीं
झूठे प्रेम की आसा का
Tuesday, May 15, 2007
मैं

किन्तु पल्लवित
मनुष्यों के असीम अनंत दृश्य में होना हुआ.
भाग्य की रेखाओं से आती वायु के वेग में
मेरी उम्र के बरस बर्फ के मैदानों तक बिखरे.
वेदों की भाषा का अध्ययन, प्रसार, शिक्षण की कामना.
मेरी निर्दोष दृष्टि मेरा सम्मान.
तेरी चाहना मेरा अंतस.
तेरा होना मेरा होना.
जब कभी उदासी तुमको अपने पास बुलाएगी,
मेरी छुअन लौटा लाएगी तुमको.
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