सुबह की पहली बस
अक्सर छूट जाती है क्षणिक दूरी से
सांस सांस संभाले हुए देखूं
बर्फ का विस्तार.
तुम्हारी
पतली बाँहों की ओर
न पुनारागन न पुनरावृति
किन्तु लौट लौट कर आता है मन.
इस जाड़े भी
स्नो शू पर बनती हैं बेढब आकृतियां
उनमें दिख जाता है
उदास चेहरा
स्मृति से भरा हुआ.
मेरे कच्चे दिनों में बिलोए हुए
स्वप्नों के मध्यांतर
रुक जाते हैं तुम्हारे स्पर्श की याद पर आकर.
मैं लौटूं पग पग
बर्फ भरी राह पर चलते हुए
मेरे पांवों में
अतीत की पाजेब.
मेरे गले में सदियों पुराने फूलों की माल.
अक्सर छूट जाती है क्षणिक दूरी से
सांस सांस संभाले हुए देखूं
बर्फ का विस्तार.
तुम्हारी
पतली बाँहों की ओर
न पुनारागन न पुनरावृति
किन्तु लौट लौट कर आता है मन.
इस जाड़े भी
स्नो शू पर बनती हैं बेढब आकृतियां
उनमें दिख जाता है
उदास चेहरा
स्मृति से भरा हुआ.
मेरे कच्चे दिनों में बिलोए हुए
स्वप्नों के मध्यांतर
रुक जाते हैं तुम्हारे स्पर्श की याद पर आकर.
मैं लौटूं पग पग
बर्फ भरी राह पर चलते हुए
मेरे पांवों में
अतीत की पाजेब.
मेरे गले में सदियों पुराने फूलों की माल.