Sunday, October 12, 2014

लौटूं पग पग

सुबह की पहली बस
अक्सर छूट जाती है क्षणिक दूरी से
सांस सांस संभाले हुए देखूं
बर्फ का विस्तार. 

तुम्हारी
पतली बाँहों की ओर
न पुनारागन न पुनरावृति
किन्तु लौट लौट कर आता है मन.

इस जाड़े भी
स्नो शू पर बनती हैं बेढब आकृतियां 
उनमें दिख जाता है
उदास चेहरा
स्मृति से भरा हुआ.

मेरे कच्चे दिनों में बिलोए हुए
स्वप्नों के मध्यांतर
रुक जाते हैं तुम्हारे स्पर्श की याद पर आकर.

मैं  लौटूं पग पग
बर्फ भरी राह पर चलते हुए
मेरे पांवों में
अतीत की पाजेब.
मेरे गले में सदियों पुराने फूलों की माल.


Friday, September 6, 2013

मोक्ष

किसी ने नहीं कहा
भद्र पुरुष कहाँ जाते हो तुम
प्रिय को तज कर.

मोक्ष
किस जगह, किस विध
किन्तु एक परछाई तो बाँध जाते सिरहाने.

एक अंतिम विदा कहने
आना लौट कर, बस एक बार.

Thursday, June 28, 2012

अजन्म

कच्चे बीज से जो जन्मा
वह जन्मा ही न था.

अजन्म
रिस रहा है तरल पीर की भांति.



Thursday, October 20, 2011

जीना निरंतर

असम्भव ही था
किन्तु नम भीगी संध्या में
तपिश असीमित.

तुम्हारी कांपती स्मृति
स्पर्श करती चलती है
मेरा मन.

असंभव ही था इस तरह जीना, जो निरंतर है.

Sunday, October 10, 2010

कच्ची मिट्टी की खोह

कच्ची मिट्टी की खोह में
प्रिय संग बसाया एक आगार.

नम वायु के झोंके
दीवस के दीप्त मध्याहन
रात्रि की श्याम चादर
ज्यों कोई अश्रु भरी आँखें
अग्नि भरा ह्रदय
और आस रहित जीवन.

मैं अपनी चुप्पी से कहूँ
बाँधे अपना धीर
तुम सुनो पुकार कि आना एक बार.

Sunday, August 15, 2010

तुम्हारे लिए

अध खुले अधर
नमक के समुद्र में
चुनते हुए बिछोह के मोती.

अकस्मात वर्षा के
आगमन की भांति
तुम घेर लो मुझे. मेरे सम्पूर्ण को.

मैं आती हूँ जगत में तुम्हारे लिए
ओ प्रिये.






Wednesday, June 9, 2010

आस



लुढक गया मन का पात्र
बह गया आसव सारा प्रेम का.

सुवास, जल, चांदनी
और तुम्हारे होने की आस ने पी लिया
मेरा अंतस.  

बूँद की तरह फिर उतरो मन के पात्र में.