कवितावली
Wednesday, June 9, 2010
आस
लुढक गया मन का पात्र
बह गया आसव सारा प्रेम का.
सुवास, जल, चांदनी
और तुम्हारे होने की आस ने पी लिया
मेरा अंतस.
बूँद की तरह फिर उतरो मन के पात्र में.
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)